हास्य-व्यंग्य >> यूँ ही यूँ हीअशोक चक्रधर
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यूँ ही
इस पुस्तक में जाने-माने हास्य कवि और लेखक अशोक चक्रधर ने साहित्य की एक अत्यंत विशिष्ट मगर लुप्त होती जा रही विधा चंपू का संकलन अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है। चंपू की व्याख्या चक्रधर जी कुछ यूं करते हैं:
चंपू होता है, अन्नकूट की तरकारी। गद्य, पद्य,
नाटक, नौटंकी, चीजें गड्डमड्ड सारी। यहाँ सभी
विधाओं में विधाता अपना मुंह खोलता है।
चंपू में सपने से लेकर किचन के बर्तन तक
सब बोलते हैं। और सच बोलते हैं।
सच बोलने वाले के पास एक लम्ब्रेटा
स्कूटर होना चाहिए,
सच की एक किक मारे और लंबा होले
और दूर जाकर
गाए - ओले-ओले-ओले।
चंपू होता है, अन्नकूट की तरकारी। गद्य, पद्य,
नाटक, नौटंकी, चीजें गड्डमड्ड सारी। यहाँ सभी
विधाओं में विधाता अपना मुंह खोलता है।
चंपू में सपने से लेकर किचन के बर्तन तक
सब बोलते हैं। और सच बोलते हैं।
सच बोलने वाले के पास एक लम्ब्रेटा
स्कूटर होना चाहिए,
सच की एक किक मारे और लंबा होले
और दूर जाकर
गाए - ओले-ओले-ओले।
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